शर्ट, पैण्ट, कपड़े की टोपी और फेल्ट हैट के बारे में / नाज़िम हिक़मत
अगर कोई है
जो कहता है
मुझे
साफ़ कमीज़ का दुश्मन
तो देखना चाहिए उसे तस्वीर मेरे महान शिक्षक की,
गुरुओं के गुरु, मार्क्स, गिरवी रखते थे
अपना जैकेट,
और शायद खाते हों चार दिन में एक जून;
फिर भी
उनकी ख़ूबसूरत दाढ़ी
झरने की तरह
गिरती थी लहराती हुई
बेदाग, झक्क सफ़ेद
कलफ़ की हुई कमीज़ पर….
और किसी इस्त्री किए पैण्ट को
आज तक फाँसी की सज़ा हुई?
समझदार लोगों को
यहाँ भी पढ़ना चाहिए अपना इतिहास —
1848 में जब गोलियाँ उनकी जुल्फ़ें सँवारती थीं,
पहनते थे वे
असली विलायती ऊन का पैण्ट
बिलकुल अँग्रेज़ी फ़ैशनवाला,
कलफ़ लगाकर इस्तरी किया हुआ
हमारे महापुरुष, एंगेल्स….
व्लदीमिर इल्यीच उल्यानफ़ लेनिन जब खड़े हुए
मोर्चे पर किसी आग-बबूला महामानव की तरह
पहने थे कालरदार कमीज़
और साथ में टाई भी….
जहाँ तक मेरी बात है
मैं महज एक सर्वहारा कवि हूँ
— मार्क्सवादी-लेनिनवादी चेतना, तीस किलो हड्डियाँ,
सात लीटर ख़ून,
दो किलो मीटर शिराएँ और धमनियाँ,
माँस, माँसपेशियाँ, त्वचा और नसें,
कपड़े की टोपी मेरे सिर की
यह नहीं बताती
कि उसमें क्या खूबी है
मेरे इकलौते फेल्ट हैट से ज़्यादा
और इस तरह गुज़रता जा रहा है
एक-एक दिन….
लेकिन
जब मैं पहनता हूँ हफ़्ते में छह दिन
कपड़े की टोपी
तभी जाकर हफ़्ते में एक दिन
पहन पाता हूँ
अपनी प्रिया के साथ घूमते वक़्त
साफ-सुथरा
अपना एकलौता फेल्ट हैट….
सवाल यह है कि
मेरे पास क्यों नहीं हैं दो फेल्ट हैट?
आपका क्या कहना है उस्ताद?
क्या मैं काहिल हूँ?
नहीं !
दिन में बारह घण्टे जिल्दसाज़ी करना,
अपने पैरों पर खड़े-खड़े तब तक
जब तक मैं लुढ़क के गिर न जाऊँ,
मेहनत का काम है….।
क्या मैं बिलकुल भोंदू हूँ?
नहीं!
मसलन,
मैं हो ही नहीं सकता
उतना गया गुज़रा
जितना अलाने जी या फलाने जी…
क्या मैं कोई बेवकूफ़ हूँ?
ठीक है,
पर पूरी तरह नहीं….
थोड़ा लापरवाह हो सकता हूँ….
लेकिन कुल मिला कर
असली वजह यही है कि
मैं एक सर्वहारा हूँ,
भाई,
एक सर्वहारा !
और मेरे पास भी दो फेल्ट हैट होंगे
— दो क्या दो लाख —
लेकिन तभी जब,
सभी सर्वहाराओं की तरह
मेरा भी मालिकाना होगा — कब्ज़ा होगा हम सब का —
बार्सिलोना-हाबिक-मोसान-मैनचेस्टर की कपड़ा मिलों पर
अगर नहींsssss,
तो नहीं !
अंग्रेज़ी से अनुवाद : दिगम्बर