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शवयात्रा में नदी नहीं / प्रमोद कुमार
Kavita Kosh से
उनके कंधों पर मुर्दों का भारी बोझ था,
अपनी मुक्ति के लिए
वे पूरे रास्ते जीवन को झूठ बताते आए थे,
उनका रास्ता उन्हें नदी की ओर ले आया था
लेकिन, वे उसके एक घाट पर ही
अटके खड़े थे
मुर्दे उस गन्तव्य पर रुक गए थे,
उन्हें ढो कर लाए लोग
बेचैनी में
डूब-डूब नहा रहे थे
उन्हें अपने स्वर्ग तक
पहुँचने की चिन्ता नदी में उतरने से रोके खड़ी थी,
नदी पूरे मन से धरती पर थी
वह वहाँ पल भर भी नहीं थमी
उसे शमशान तक ही
नहीं जाना था ।