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शव पड़े हैं राजद्वारे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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और हम
गाण्डीव पकड़े हाथ में
खड़े हैं सागर किनारे

समय का रथ यहाँ उलटा चल रहा
उठ रहीं लहरें - उन्हीं में दिन बहा

एक आकृति
रेत पर लेटी हुई है
एक टूटा चक्र धारे

उधर सूरज की दिशा में है अँधेरा
वहीं पर है कहीं गिद्धों का बसेरा

रुदन-हाहाकार की
ध्वनि आ रही है
शव पड़े हैं राजद्वारे
            
हुआ युग का अंत - आदिम हुईं साँसें
चुभ रहीं हैं देह में अनगिनत फाँसें

खड़े राजन
आँख मोड़े
मंत्र विपदा के गए घर-घर उचारे