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शशि हो तुम, तुम्हीं चाँदनी हो / संजीव 'शशि'

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हर पल नयनों में बसती है,
तेरी सूरत प्यारी-प्यारी।
शशि हो तुम, तुम्हीं चाँदनी हो,
तुमसे जीवन में उजियारी।।

पग धरे महावर रचे हुए,
जब तुमने घर की देहरी पर।
आभास हुआ उस पल ऐसा,
लक्ष्मी आयीं हों मेरे घर।
लायीं थीं अपने आँचल में,
भरकर खुशियाँ कितनी सारी।

मेरी स्मृतियों में अब भी,
आलिंगन में तुमको भरना।
बिखरा कर अलकों को मेरे,
मस्तक पर अधरों को धरना।
जाने क्या-क्या कह जाते थे,
मुझसे दो अँखियाँ कजरारी।

आस्तित्वहीन तुम बिन प्रिय मैं,
कविता हो जैसे छंद बिना।
जैसे हो मोती सीप बिना,
जैसे हो सुमन सुगंध बिना।
तुमसे पायी मेरे घर ने,
नन्ही बिटिया की किलकारी।
हम सात वचन में बँधे हुए,
हम सुख में दुख में साथ चलें।
आनेवाले कल के सपने,
अपने नयनों में साथ पलें।

दीपक बाती बन साथ जलें,
जब हो जीवन में अँधियारी।