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शहर के नीचे से / टोमास ट्रान्सटोमर
Kavita Kosh से
सफ़ेद सूरज पिघल रहा है धुंध में
टपक रही है रोशनी रास्ता बनाते हुए नीचे
जमीन में दबी मेरी आँखों की तरफ
जो शहर के नीचे से देख रही हैं ऊपर
नीचे से देखना शहर को : सड़कों और इमारतों की नींव को
जैसे युद्ध के दौरान किसी शहर का हवाई दृश्य
जैसे उल्टी तरफ से -- एक खुफिया तस्वीर
फीके रंगों की खामोश वर्गाकार आकृतियाँ
यहाँ लिए जाते हैं फैसले
और कोई फर्क नहीं कर पाता ज़िंदा और मुर्दा हड्डियों में
तेज हो जाती है सूरज की रोशनी और
भर जाती है हवाईजहाजों के काकपिट
और मटर की फलियों के भीतर.
(अनुवाद : मनोज पटेल)