भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर हमारा जो भी देखे सपनों में खो जाता है / देवमणि पांडेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर हमारा जो भी देखे सपनों में खो जाता है।
यहाँ समन्दर जादू बनकर हर दिल पर छा जाता है।

देख के होटल ताज की रौनक़ मदहोशी छा जाए
चर्चगेट का रोशन चेहरा दिन में चाँद दिखाए।

चौपाटी की चाट चटपटी मन में प्यार जगाती है
भेलपुरी खाते ही दिल की हर खिड़की खुल जाती है।

कमला नेहरु पार्क पहुँचकर खो जाता जो फूलों में
प्यार के नग़मे वो गाता है एस्सेल वर्ल्ड के झूलों में।

जुहू बीच पर रोज़ शाम जो पानी-पूरी खाए
वही इश्क़ की बाज़ी जीते दुल्हन घर ले आए।

नई नवेली दुल्हन जैसी हर पल लगती नई
प्यार से इसको सब कहते हैं आई लव यू मुम्बई