भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर - 3 / रुस्तम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज फिर वहाँ कोई नहीं था

कुछ जाने-पहचाने चेहरे
कुछ बिलकुल अनजान
आ जाते —
तो क्या हो जाता

उजाड़ शहर था कमरे के भीतर

जहाँ वास्तविक था मैं स्वप्न में
और स्वप्न
मुझमें
वास्तविक
नहीं
था