भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
इस शहर में
एक घर
जहाँ मै ठहर गया हूँ
रहस्य में लिपटा सा
फिर भी पहचाना सा
और घर में
एक छज्जा
छज्जे पर मै
सामने एक घर,फिर दो घर,ढेर सारे घर
घर
घर
घर पर घर
पतझर में बिखरे पत्तो की तरह