शहीदों के नाम माफ़ीनामा / प्रेमचन्द गांधी
शहीदो
मैं पूरे देश की ओर से
आपसे क्षमा चाहता हूँ
हमें माफ़ करना
हमारे भीतर आप जैसा
देश प्रेम का जज़्बा नहीं रहा
हमारे लिए देश
रगों में दौड़ने वाला लहू नहीं रहा
अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से आबद्ध
भूमि का एक टुकड़ा मात्र है देश
हमें माफ़ करना
हम भूल गये हैं
जन-गण-मन और
वंदे मातरम् का फ़र्क
नहीं जानते हम
किसने लिखा था कौनसा गीत
किसके लिए
हमें माफ़ करना
हमारे स्कूल-घर-दफ़्तरों में
आपकी तस्वीरों की जगह
सुंदर द्दश्यावलियों
आधुनिक चित्रों और
फ़िल्मी चरित्रों ने ले ली है
हमें माफ़ करना
‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाते हुए
भले ही रुँध जाता होगा
लता मंगेशकर का गला
हमारी आँखों में तो कम्पन भी नहीं होता
हमें माफ़ करना
हम देशभक्ति के तराने
साल में सिर्फ़ दो बार सुनते हैं
हम पाँव पकड़कर क्षमा चाहते हैं
आपने जिन्हें विदेशी आक्रांता कहकर
भगा दिया था सात समुंदरों पार
उन्हीं के आगमन पर हमने
समुद्र से संसद तक
बिछा दिये हैं पलक-पाँवड़े
हमें माफ़ करना
हम परजीवी हो गये हैं
अपने पैरों पर खड़े रहने का
हमारे भीतर माद्दा नहीं रहा
हमारे घुटनों ने चूम ली है ज़मीन
और हाथ उठ गये हैं निराशा में आसमान की ओर
हमें माफ़ करना
आने वाली पीढ़ियों को
हम नहीं बता पायेंगे
बिस्मिल, भगतसिंह, अशफ़ाक़ उल्ला का नाम
हमें माफ़ करना
हमारे इरादे नेक नहीं हैं
हमें माफ़ करना
हम नहीं जानते
हम क्या कर रहे हैं
हमें माफ़ करना
हम यह देश
नहीं सँभाल पा रहे हैं