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शाकी बद-ज़न आज़ुर्दा है मुझ से मेरे भाई यार / शमीम अब्बास

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शाकी बद-ज़न आज़ुर्दा है मुझ से मेरे भाई यार
जाने किस जा भूल आया हूँ रख कर मैं गोयाई यार

ख़ामोशी के सहरा चुटकी में आवाज़ों के जंगल
कितनी बस्ती उजड़ी हम से कितनी हम ने बसाई यार

देखो ना-उम्मीदी को ऐसे ठेंगा दिखलाते हैं
अक्सर अपने घर की कुंडी ख़ुद हम ने खटकाई यार

तन्हाई में अब भी कोई बालों को सहलाता है
हाथ पकड़ना चाहें तो ठट्ठा मारे पुरवाई यार

आज उसे फिर देखा जिस को पहरों देखा करते थे
अब कुछ वो भी मांद पड़ा है कुछ अपनी बीनाई यार

अच्छी बस्ती अच्छा घर अच्छे बच्चे अच्छे हालात
जिस के देखो साथ लगी है इक ख़्वाहिश आबाई यार

मअ‘नी की धज्जी बिखरी और लफ़्ज़ों के ताने बाने
रात तख़य्युल ने मस्ती में की हँगाम-आराई यार