भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शाख़ों को तुम क्या छू आए / नक़्श लायलपुरी
Kavita Kosh से
शाख़ों को तुम क्या छू आए
काँटों से भी ख़ुशबू आए
देखें और दीवाना कर दें
गोया उनको जादू आए
कोई तो हमदर्द है मेरा
आप न आए आँसू आए
इश्क़ है यारो उनके बस का
जिन को दिल पर काबू आए
उन कदमों की आहट पाकर
फूल ही फूल लबे –जू आए
गूँज सुनी तेरे चरख़े की
पर्बत छोड़ के साधू आए
‘नक्श़’ घने जंगल में दिल के
फ़िर यादों के जुगनू आए