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शाख़ मेरी न अब समर मेरा / शीन काफ़ निज़ाम
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शाख़ मेरी न अब समर मेरा
अख़्तियार अब है आँख भर मेरा
आईने में तो अक्स है लेकिन
मार डालेगा मुझको डर मेरा
आसमानों प' तू रहा ख़ामोश
घर गया तेरे नाम पर मेरा
मैंने सज़दे में सर झुकाया था
ले गए सर उतार कर मेरा
दश्तों-सहरा उजाड़ आया हूँ
ढूँढ़ता हूँ कहाँ है घर मेरा
दस्तो-बाजू लिए ज़बाँ मत ले
आख़िरी पर तो मत क़तर मेरा
मू-ब-मू कुछ सिमट रहा है 'निज़ाम'
और चर्चा है दर-ब-दर मेरा