भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शान्तनु / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुरु कुल शान्तनु नरेश के जनम रामा।
बड़ परतापी धरम धारी हो सांवलिया॥
गंगा अरु सतवती रूप गुण आगरी हो।
शान्तनु नरेश के दुलारी हो सांवलिया॥13॥
आठ लाल गंगाजी से पैदा होलैय भारत में।
पर धरती पै एके देवव्रत हो सांवलिया॥
भीषम के नाम से परसिध होवैय जगवा में।
बाल ब्रह्मचारी तपधारी हो सांवलिया॥14॥
चित्रांगद अरु विचित्र वीर्य्य नाम रामा।
सतवती केर दुअ लाल हो सांवलिया॥
काल केर गाल चित्रांगद होइ गेलैय रामा।
हुनका के एक हुन पूत हो सांवलिया॥15॥
से हे हाल हाय विचित्र विर्य्य केर सुनु रामा।
केना करी बंशवा चलतै हो सांवलिया॥
अम्बिका अम्बालिका दुवो राज रानियां हो।
यौवना में विधवा दिखाबैय हो सांवलिया॥16॥
एत बड़ वश के बुड़त देखि व्यास रामा।
मने मन करत विचार हो सांवलिया॥