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शान्तम् पापम् / नंदकिशोर आचार्य

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वाह जनाब
गिर नहीं जाऊँगा  ?
‘............’
शान्तम् पापम् ! शान्तम् पापम् !
बोझा कहते हैं इसे आप
यह ईश्वर हैं भाई साहब !
माँ ने दिया था मुझे
हर माँ देती है हर बेटे को
देख लीजीए
हम सभी बैसाखियों पर ही तो
कन्धे टिकाए चल रहे हैं।
आप के माँ नहीं है क्या जी ?
शून्य से टपके है आप हेंहेंहेंऽऽऽ
‘.............’
लँगड़ा होगा तुम्हारा बाप !
‘............’
माँ को फेंक दूँ !
जी काट लूँगा तुम्हारी
बातों के भूत लातों से नही मानते हैं (???)
क्या ? आदमी के दो टाँगें क्यों होती हैं ?
होती हैं बस (???)
अभी आप पूछ लेंगे-गधे के चार क्यों ?
‘..............’
जी हाँ, सींग तो मेरे भी नहीं है।
(1970)