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शामिल होते / बुद्धिनाथ मिश्र
Kavita Kosh से
शामिल होते शोकसभा में
फल बाँटें बीमारों में ।
कोशिश सबकी यही कि कैसे
नाम छपे अख़बारों में ।
चार टके की करते सेवा
सौ खरचें विज्ञापन पर
नारद के वंशज सम्वादी
जीते उनकी खुरचन पर ।
बन जाती हैं बिगड़ी बातें
रातोंरात इशारों में ।
सूर्यदेव जैसे नायक वे
सौ-सौ विवश पृथाओं के
बड़े-बड़े बैनर प्रमाण हैं
उनकी दानकथाओं के ।
मुट्ठी भर चावल की ख़ातिर
सुरगुरु खड़े कतारों में ।
चाट रहे कुर्सी को जैसे
साँड़ गाय को चाटे है
जाए कौन किधर कैसे
हर पैड़ा बिल्ली काटे है ।
बदल गए सपने विराट
सबके सब बौने नारों में ।