भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शाम-ए-फ़िराक़ आज भी सोहबत वही मिली / रवि सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शाम-ए-फ़िराक़<ref>जुदाई की शाम (evening of separation)</ref> आज भी सोहबत वही मिली
ख़ल्वत<ref>अकेलापन (solitude)</ref> में फिर से आप की मौजूदगी मिली

दस्तक हुई है दर पे तसव्वुर के बार-बार
तहत-ए-शु'ऊर<ref>अवचेतन (subconscious)</ref> कोई कहानी दबी मिली

पहुँचे ख़याल-ए-हुस्न से हुस्न-ए-ख़याल तक
दरिया की थी तलाश हमें तिश्नगी<ref>प्यास (thirst)</ref> मिली

आहट हुई थी आप की मुद्दत के बाद आज
ठिठकी हुई सी दर पे खड़ी ज़िन्दगी मिली

ख़िलक़त<ref>जनता, सृष्टि (people, creation)</ref> को क्या मिले कि उसे आगही<ref>चेतना (awareness)</ref> मिले
मिट्टी को क्या मिला तो मुझे आगही मिली

सूरज-मुखी फ़रेफ़्ता<ref>मुग्ध ( charmed, infatuated)</ref> सूरज ग़ुरूर में
आलम के हर अज़ीम<ref>महान (great)</ref> को कैसी ख़ुदी मिली

उतरा है ख़ुद के पार समन्दर हज़ार बार
दुनिया हरेक बार कोई और ही मिली

शब्दार्थ
<references/>