भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शाम की शरबतिया / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
रोशनी का
सोन-चम्पई लिबास पहने
शाम की शरबतिया
आकाश से जमीन पर आई
महानगर मदरास में
रात हुए तक
नाचते-नाचते दिल और
दिमाग में आदमियों के छाई
जादुई रंग-रूप से समाई
मैंने उसे देखा
और भेंटा भी
लेकिन अब लोप हुई
शरबतिया
रात के अँधेरे में डूब गई दुनिया।
रचनाकाल: ०८-०६-१९७६, मद्रास