शाम ढलते वो याद आये हैं
अश्क पलकों पे झिलमिलाये हैं
दिल की बस्ती उजाड़ने वाले
मेरी हालत पे मुस्कुराये हैं
कोई हमदम न हमनवा कोई
हर तरफ़ रंज-ओ-ग़म के साये हैं
बाग़-ए-दिल में बहार आई है
ज़ख़्म गुल बन के खिलखिलाये हैं
वक़्त-ए-मुश्किल न कोई काम आया
हमने सब दोस्त आज़माये हैं
क़िस्सा-ए-ग़म सुनायें तो किसको
आज तो अपने भी पराये हैं
इन बहारों पे ऐतबार कहाँ
हमने इतने फ़रेब खाये हैं
प्यार की रहगुज़र पे ऐ ‘साग़र’!
हम कई मील चल के आये हैं