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शाम ढले घर आने जाने लगते हैं / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
शाम ढले घर आने जाने लगते हैं
याद के पंछी शोर मचाने लगते हैं
सच्चाई जब हम को मुजरिम ठहराये
आईनों पर हम झुंझलाने लगते हैं
मजबूरी जब होंटों को सी देती है
आँसू दिल का दर्द बताने लगते हैं
ख़ुशहाली का बस एलान किया जाए
घर में रिश्ते आने जाने लगते हैं