शाम बेरंग अनमनी क्यों है
बेख़ुदी में भी बेकली क्यों है।
रौशनी भी है और अंधेरा भी
शमअ ये आज अधजली क्यों है।
गुफ्तगू ख़त्म हो गयी सारी
दास्तां फिर भी अनकही क्यों है।
वक़्त-बेवक़्त ये रुलाती है
इस क़दर याद मनचली क्यों है।
अब तलक मैं समझ नहीं पाया
दिल मिरा मुझसे अजनबी क्यों है।
तुमसे होकर जुदा मैं हैरां हूँ
ज़िन्दगी अब तलक बची क्यों है।
हम नहीं जानते बता दीजै
दुश्मनों से भी दोस्ती क्यों है।