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शाम सी नम,रातों सी भीनी,भोर सी है उजियारी माँ / सोनरूपा विशाल
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शाम सी नम,रातों सी भीनी,भोर सी है उजियारी माँ
मुझमें बस थोड़ी सी मैं हूँ, मुझमें बाक़ी सारी माँ
जब मुश्किल हालात के अंगारों से हमको आँच मिली
बारिश सी शीतलता हमको देती रही हमारी माँ
कैसे भी ख़र्चे हों उनको वो पूरा कर देती हैं
रखती है मासूम से मन में बनिए सी हुश्यारी माँ
कितनी बार उसे देखा था मैंने ऐसे रूप में भी
होंठों पर मुस्कान लिए है आँखों में लाचारी माँ
माँ की सूरत और सीरत का ज़िक्र करूँ तब ये बोलूँ
फूल सा चेहरा,कोकिल वाणी,पूजा की अग्ज्ञारी माँ