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शाम / विजय वाते
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दिन बीता चौपाया पंछी सी शाम
थकी थकी घर लौटी दफ्तर सी शाम
रोशन थी चंदा की लदकद से आँख
सारा दिन तरसी थी ममता की शाम
कद भर था साया काँधे थी धूप
कुछ कुछ वो हल्की थी कुछ भारी शाम
अलसाई सुबह थी उकताया दिन
दरवाज़ा तकती थी सूरज की शाम
धरती का साया झुलसाया इतराया
चम चम चम सूरज की टिमटिम सी शाम