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शायद / कुमार राहुल
Kavita Kosh से
इन दिनों मेरे कमरे में
ग़र दाखिल हो कोई
तो एक उखड़ी हुई सांस,
सिगरेट के टुर्रे और
शराब की खाली
बोतलों के अलावा
कुछ भी न मिले शायद...
या फिर मैं ही मिलूं
किसी किताब में
किसी किस्से के दरमियान
तवील इन्तिज़ार के गोया
उदास दो आँखों में
आखिरी बूंद के मानिंद
शराब की किसी बोतल में
या कि
किसी सिगरेट के
अधबुझे आखिरी क़श में
शायद ...