शाश्वत सत्य / विनीत मोहन औदिच्य
जिनकी हो चुकी है मृत्यु, उनके लिए उचित नहीं है शोक करना
जो जीवित हैं अभी उनके लिए नहीं अपेक्षित है दुख से भरना
सदा से विगत कालों में भी रहता आया है मानव का अस्तित्व
सुख दुख को समझ समान मोक्ष के लिए गढ़ अपना कृतित्व।
असत वस्तुओं की सत्ता का तत्व ज्ञानियों के लिए नहीं है प्रभाव
जो है शाश्वत उस सत्य का इस जगत में नहीं है लेश मात्र अभाव
है वह नितांत अज्ञानी जो आत्मा को मरने वाला या हंता जानते
काया है यह नश्वर परंतु ईश्वर अंश इस आत्मा को कोई न मारते
जैसे जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों को त्याग कर मानव नए वस्त्र पहनता
उसी प्रकार जीवात्मा छोड़ कर पुराना शरीर नई काया बदलता
इस आत्मा को न जल गला सकता और वायु इसे सुखा सकती
न कोई शस्त्र काट सकता न ही अग्नि आत्मा को जला सकती।
जब जन्म लिए हर प्राणी का धरा पर एक दिन मरण है निश्चित
और मृतक का जन्म है सुनिश्चित तो नहीं है उचित होना दुखित।