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शिकस्त उनकी हुई ना होगी के मोर्चो पर अड़े हुए थे / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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शिकस्त उन कि हुई ना होगी के मोर्चो पर अड़े हुए थे
जवान लाशे बग़ैर दफनाएय ख़न्दकौऊ में पड़े हुए थे

वो एक मज़लूम शहज़ादा तश्ना लब भी था फ़ाक़ा केश भी
जड़ा था सोने का ताज सर पर बदन में हीरे गड़े हुए थे

मुक़ाम ऐ शुक्र है आप को भी दिखाई पड़ते हैं पस्ता क़ामत
हमारे शाने पर बैठ कर ही जनाब ऐ आली बङे हुऐ थे

सराब है आब जूर है क्या है उधर यह तकरार हो रही थी
बघावतों के उलम उड़ाते उधर बगूले खड़े हुऐ थे

तमाँचे बिजली लगा रही है घटायें पहैम घड़क रही हैं
यही है वो आसमान जिस पर तमाम तारे जड़े हुए थे

चमन का वो हौलनाक मंज़र के बाग़बानौ में चल रही थी
दरख्तों पर चढ़ गयी थी दीमक, तेवर के पर झड़ै हुए थे