भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शिकारी आ गए / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
तीर हाथों में लिये पैना
शिकारी आ गये!
नीड़ में सहमी हुई मैना
शिकारी आ गये!
आंख में
भीगा हुआ क्रंदन
दृष्टियों में
मूक संबोधन
दर्द से चटका हुआ डैना
शिकारी आ गये!
गोद में
सिमटे हुए चूजे
जंगलों के
शोर अनगूंजे
स्याह गहरी हो गई रेना
शिकारी आ गये!
हूक-सी
उठने लगी दिल में
आ गई है
जान मुश्किल में
कंठ में ही फंस गये बैना
शिकारी आ गये!