शिव जी हीरो बनोॅ हो-03 / अच्युतानन्द चौधरी 'लाल'
राग देसी ताल-कहरवा
गौरा न बिहैबै हम्में दुलहा छै उमतहवा हे
हाथोॅ में तिरसूल डमरुआ बूढ़ बैल सवरिया हे।।
माथा पर दुतिया के चनरमां जटा में गंगा मैया हे
देहोॅ में छै भसम रमैले लाले लाल पगड़िया हे।।
गल्ला में दै सांप लटकलोॅ बड़का बड़का दढ़िया हे
कानोॅ कुबड़ोॅ उच्च बुच्च भूत परेत बरतिया हे।।
नारद बाबा संजोगोॅ सें कहीं जों हमरा मिललै हे
हेनोनी पाठ पढ़ैबै बुढ़वा सिर धुनि धुनि पछतैतै हे।।
थरिया लोटा पोथी पतरा सब कुछ फेंकी देबै हे
दाढ़ी एक एक नांेची क’ रूप बिगाड़ी देबै हे।
‘लाल’ के कहना मानोॅ मैना तोहें विहाबोॅ धीया हे
तीन लोक के मालिक तोरा मिललोॅ छौं जमैया हे।।
दादरा
आंबी गेलै दुलहा बरद असवार हो
भूत प्रेत संग लेलें गिरि के दुआर हो।।
बरोॅ के जटा में गांग मुँहोॅ में धथूरा भांग
हाथोॅ में तिरसूल लेलें चनरमां लिखार हो।।
देखी ‘क’ दुलहा के ओर सभ्भै के आंखी सें लोर
जरी गेलै गौरा माय के एंड़ी सें कप्पार हो।।
त्रिनयन विशाल लाल आशुतोष महा काल
आज मैना तोरा भागें ऐल्हौं दुआर हो।।