शिव जी हीरो बनोॅ हो-04 / अच्युतानन्द चौधरी 'लाल'
दादरा
कथील’ भोला हे तोंहें हमरा सें रुसलोॅ
हमरा सें रुसलोॅ हे हमरा सें कुढ़लोॅ।।
कैन्हें हे भोला हमरा पर तोरोॅ
थोथनोॅ रहैं छौं लटकलोॅ लटकलोॅ।।
नैरहोॅ धोॅर दुआरो छोड़लां, छोड़लां महल अटारी
माय बाप के गोदी छोड़लां बनलां तोरे पुजारी
एतन्हौं पर भोला हे हमरा पर तोहें
हरदम रहैछोॅ गुस्सैलोॅ गुस्सैलोॅ।।कथील’.।।
गाय गोरू के सानी दैल’ नैरहां छेलै गुआरोॅ
बसहा खियाल’ तोंहें हे भोला हमरहै करैछोॅ कचारोॅ
घास भूस कुट्टी काटैतें हाथोॅ में फोंका उठलोॅ जी उठलोॅ।।कथील’।।
तोरा खुशी के खातिर हे भौला हम्में रहैछी लागलोॅ
भांग पिसै के चलतें महादेव हाथोॅ में घट्ठा पड़लोॅ जी पड़लोॅ।।
गौरा मैया के बात सुनी क’ शिवली हंसल, हंसलोॅ
मैया सें खूब’ परेमोॅ सें बोललै हम्में कहां दी रुसलोॅ जी रुसलोॅ।।
दादरा
जइबै जइबै भोला के दुआर, आय सावन के सोमवार
सभ्भे दुखिया के होतै उबार, आय सावन के सोमवार।
बेलपात अच्छत चन्दन सें
रचि रचि क’ करबै सिंगार, आय सावन के सोमवार।
तीनों भुवन में महादेव रंग, दानी कहाँ के उदार।।आय सावन.।।
लाल के दुख मेटोॅ हे दिगम्बर
एकरा छै तोरे ठहार, आय सावन के सोमवार।।