शिव जी हीरो बनोॅ हो-30 / अच्युतानन्द चौधरी 'लाल'
गजल
साँझ बहुते उदास लागैछै
याद रहि रहि कॅ जी दुखावैछै।
आने वाला के तॅ कमी नै छै
जेकरा आना छै से नै आवैछै।।
तोरा गिनतें रहैछी साैंसॅ रात
हमरा आँखी नै नीन आबैछै।।
के कही छै चनरमाँ शीतल छै
बिरहिनी के बहुत जरावैछै।
ग़ज़ल
पत्थौं साथ छोड़ी दैछै ठार सुखी गेला सें
तोरो साथ छोड़ी देथौं सभ्भै बूढ़ोॅ भेला सें।।
चारे दिन के जिनगी छौं हंसी खुशी सें काटी दॅ
फैदा कुच्छू नै छौं जी दिन रात तोरा झखला सें।।
गेलै दिन सासू के पुतहुओॅ के दिन ऐलोॅ छै
फुर्सत नै छै बुढ़िया कॅ बुतरुआ कॅ खेलैला सें।।
चलोॅ मेढ़ियानाथोॅ में शिवराती मेला देखैलॅ
पूजा पाठ छोड़ोॅ जी छुट्टी केकरहौ नै घुमला सें।।
स्वर्गोॅ के अकासोॅ के कथौलॅ बात करैछोॅ
मतलब छौं धरती सें जी धरती पर काम करला सें।।
लाल के कहना मानोॅ भैया झगड़ा झांटी दूर करोॅ
दुनियां रैन बसेरा तोरा कुछ नै मिलबौं लड़ला सें।।