शीत और प्रेम / लवली गोस्वामी
मेरे लिए प्रेम मौन के स्नायु में गूंजने वाला अविकल संगीत है
तुम्हारा मौन प्रेम के दस्तावेजों पर तुम्हारे अंगूठे की छाप है
रात का तीसरा प्रहर
कलाओं के संदेशवाहक का प्रहर होता है
जब सब दर्पण तुम्हारे चित्र में बदल जाते हैं
मै श्रृंगार छोड़ देती हूँ
जब सुन्दर चित्रों की सब रेखाएं
तुम्हारे माथे की झुर्रियों का रूप ले लेती हैं
मैं उष्ण सपनों के रंगीन ऊन पानी में बहाकर
सर्दी की प्रतीक्षा करती हूँ
सर्दियाँ यमराज की ऋतु है
सर्दियाँ पार करने के आशीर्वाद हमारी परम्परा हैं
- पश्येम शरदः शतम्
- जीवेम शरदः शतम्
- जीवेम शरदः शतम्
मृत्यु का अर्थ देह से उष्णता का लोप है
तो शीत प्रेम का विलोम है
अक्सर सर्दियों में बर्फ के फूलों सा खिलता तुम्हारा प्रेम मेरी मृत्यु है
तुम मृत्यु के देवता हो
तुम्हारे कंठ का विष अब तुम्हारे अधरों पर हैं
तुम्हारे बाहुपाश यम के पाश हैं
सर्दियों में साँस-नली नित संकीर्ण होती जाती है
आओ कि आलिंगन में भर लो और स्वाँस थम जाये
न हो तो बस इतने धीरे से छू लो होंठ ही
कि प्राणों का अंत हो जाये
तुम मेरी बांसुरी हो
प्रकृतिरूपा दुर्गा की बाँसुरी
तुम में सांसों से सुर फ़ूँकती मैं
जानकर कितनी अनजान हूँ
छोर तक पहुँचते मेरी यह सुरीली साँस
संहार का निमंत्रण बन जायेगी
मेरे बालों में झाँकते सफ़ेद रेशम
जब तुम्हारे सीने पर बिखरेंगे
गहरे नील ताल के सफ़ेद राजहंसों में बदल जायेंगे
ताल, जिसे नानक ने छड़ी से छू दिया कभी न जमने के लिए
हंस, जो लोककथा में बिछड़ गए कभी न मिलने के लिए
मेरे प्रिय अभागे हरश्रृंगार इसी प्रहर खिलते हैं
सुबह से पहले झरने के लिए
सृष्टि के सब सुन्दर चित्र मेरा-तुम्हारा वियोग हैं
मेरे मोर पँख, कहाँ हो
मेरा जूडा अलंकार विहीन है
मेरी बांसुरी, मेरी सृष्टि लयहीन है।