भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शीर्षकहीन - १ / बेई दाओ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: बेई दाओ  » शीर्षकहीन - १

वह अपनी तीसरी आंख खोलता है
सिर के ऊपर चमकते उस सितारे को
पूर्व और पश्चिम की उष्ण धाराओं ने
एक महराबदार रास्ता बना दिया है
महाराजमार्ग डूबते हुए सूरज के बीच से गुज़रता है
पहाड़ों की दो चोटियां ऊंट की सवारी करती हैं और वह भहरा जाता है
उसका कंकाल कोयले की गहरी परतों के नीचे
दबा दिया गया है

वह जलमग्न संकरे केबिन में बैठा है
शिलाओं जितना शांत
उसके चारों ओर मछलियों की पाठशाला है चहकती हुई चमकती हुई
स्वतंत्रता, जिसे उस सुनहरे ताबूत में छिपाया गया है
क़ैदख़ाने के बहुत ऊपर लटक रही है
विशाल चट्टान के पीछे क़तार में लगे लोग
प्रतीक्षा कर रहे हैं कि किसी तरह
सम्राट की स्मृति में वे घुस सकें

शब्दों का निर्वासन शुरू हो चुका है

अंग्रेजी भाषा से रूपांतरण : गीत चतुर्वेदी