भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शीर्षकहीन / जया झा
Kavita Kosh से
किसी और को सौंप दूँ तो क्या
क़िस्मत तो वो मेरी ही रहेगी।
जो लिख गई लिखने वाले के हाथों
कहानी तो वो वही कहेगी।
आँखें मूंद भी लूँ मैं तो क्या
बंद पलकों से ही बहेगी।
राज कर सकती है मुझपर
बातें मेरी क्यों सहेगी?
अजूबा लगता हो लगने दो
अंधेरा होता है चिराग तले ही।