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शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा और ऋतु कठिन शिशिर की / शिरीष कुमार मौर्य

चौदह रात दूर है
पूरा चाँद
खेतों में बनी झोपड़ियों मे कितनी रात दूर है
हर आदमी के हिस्से में
एक पूरी रोटी
कोई बता सकता है क्या?

यहाँ आग है
सेंकने को कुछ नहीं अपनी निर्धन देहों के सिवा
पूरी रोटी
पूरा चाँद नहीं है

हाड़ कँपकँपाती ऋतु शिशिर के विरुद्ध
खिले हैं फूल लाल
ऐसा कहने से
मैं प्रगतिशील हो सकता हूँ घनघोर
कठिन इस ऋतु शिशिर की
अगवानी में
खिले हैं फूल लाल-गुलाबी-पीले-श्वेत-केसरिया
कहने से ठहराया जा सकता हूँ
विकट परंपरावादी

फूलों के रंग और शब्दों के अर्थ भर पर
टिकी
इन दिनों प्रगतिशीलता
हिंदी समाज की

हमसे खो गए कुछ रंग
अपने ही
जो अपार प्रकृति ने दिए
हमको

हम भूल गए
शब्दों में अपने होने के
अभिप्राय रखना

ओ साथी
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है
और कठिन ऋतु शिशिर की
इन दिनों
रितुरैण अगर गाऊँगा
प्रतिक्रयावादी कहाऊँगा