भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शुद्धोधन कै होया नन्दलाल, नगर मै धूम माचगी भारी / ललित कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शुद्धोधन कै होया नन्दलाल, नगर मै धूम माचगी भारी,
कंवर की कंचन कैसी काया, देखण आण लगे नर-नारी || टेक ||

भूप नै दुल्हन ज्यूँ सजाया नगर, निर्धन-कंग्लया मै बाँटया जर,
बुलाये पंडित-विद्वान् विप्र, जो थे ज्ञानी वेदाचारी ||

कँवर जणू कश्यप सुत भान, जिसकी अजब निराली शान,
जणू पैदा होगे खुद भगवान, भूप तेरै कलयुग के अवतारी ||

यो आठ पहर रटै राम, इसके सिद्ध होज्यांगे काम,
भूप सिद्धार्थ धरदे नाम, गात की होज्या दूर बीमारी ||

कंवर कै माथे मै भौर निशानी, पैर पदम यो बणै सैलानी,
गुरु जगदीश मिले ब्रह्ज्ञानी, ललित की शंका मेटी सारी ||