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शुभकामनाओं का शोर / कविता भट्ट

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आज फिर से बधाई-शुभकामनाओं का शोर चला है
घोषणा, भाषण,भीड़ और पुष्पगुच्छ का दौर चला है ।

जन्म दिवस पर खड़ा प्रश्न हैं
विकल सत्ता के घर जश्न हैं
केवल झुनझुनों में घिरा है
कब सँभला ,जो आज गिरा है
तार-तार उत्तर का आँचल, कहाँ इसका छोर चला है
चोट और झटकों पर झटके, हर आँसू झकझोर चला है ।
पहाड़ियों के दुखी नगर को
चढ़ती उतरती इस डगर को
अब कुछ समझ आता नहीं है
कोई सपन भाता नहीं है
 पोथी-रोटी-दवा न मिली, ये जाने किस ओर चला है
 नशे के अँधियारे में, छोड़ ये उजली भोर चला है ।