शूल मेरी ज़िन्दगी का मीत होने जा रहा है
ठोकरों का दर्द पथ का गीत होने जा रहा है!
दीप जलता ही रहा तूफ़ान कितनी बार आये
हिल गयीं डगरें न पल भर पाँव मेरे डगमगाये!
साधना बढ़ती रही जब अर्चना के स्वर सजाकर-
बढ़ रहे मेरे क़दम अंगार पथ के पार आकर!
क्यों मरण मेरी प्रगती से भीत होने जा रहा है?
ठोकरों का दर्द भी जय-गीत होने जा रहा है!
हैं नहीं अवकाश पलभर चोट भी सहला सकूँ मैं!
आँधियों को वक्ष पर रुककर ज़रा बहला सकूँ मैं!
पंथ के व्यवधान मुझसे बात करना चाहते हैं
आ रही मंज़िल निकट व्याघात करना चाहते हैं!
दूर सीमा पर गगन जब पीत होने जा रहा है
ठोकरों का दर्द भी मनजीत होने जा रहा है!
भोर के तारों ठहरना! मैं तुम्हारे पास आया
ज़िन्दगी की रीत का भींगा करुण-इतिहास लाया!
रात धरती पर सरस शबनम सुलाकर जा रही है
साधना को प्रात की अरुणिम-किरण दुलरा रही है...
पथ मुसाफ़िर के लिये संगीत होने जा रहा है!
ठोकरों का दर्द कवि का गीत होने जा रहा है!