शू के तीरन्दाज़ों का गीत / एज़रा पाउंड
यहाँ हैं हम, साग की पहली-पहली कोंपलें तोड़ते
और कहते: कब लौटेंगे हम अपने देश ?
हम यहाँ हैं क्योंकि केन-निन क़बाइली हमारे दुश्मन हैं
इन मंगोलों की वज़ह से हमें जरा भी आराम नहीं ।
साग की नरम कोपलों पर ज़िन्दा हैं हम,
जब कोई कहता हैं वापसी, दूसरों में उमड़ता है दुख ।
दुखी हैं मन, दुख प्रचण्ड है, हम भूखे और प्यासे हैं ।
हमारी सुरक्षा की पाँत अभी सुनिश्चित नहीं की गई,
कोई अपने मित्र को लौटने नहीं दे सकता ।
साग के पुराने डण्ठलों पर ज़िन्दा हैं हम ।
हम कहते हैं : क्या हमें अक्तूबर में लौटने दिया जाएगा ?
राज-काज में कोई आराम नहीं,
हमें ज़रा भी चैन नहीं ।
कटु है हमारा दुख, पर हम लौट नहीं सकते अपने देस ।
कौन-सा फूल खिला होगा ?
किसका रथ ? सेनापति का है ।
घोड़े, उसके घोड़े भी, थक गये हैं । कभी वे तगड़े थे ।
हमें कोई आराम नहीं, महीने-भर में तीन-तीन लड़ाइयाँ
क़सम से, उसके घोड़े थक गये हैं ।
सेनापति उन पर सवार हैं, सैनिक उनके साथ-साथ पैदल ।
घोड़े अच्छी तरह सिखाये हुए हैं, सेनापति के पास
हाथी-दाँत के तीर हैं और मछली के चमड़े से मढ़े हुए तरकश
दुश्मन तेज़ है, हमें सावधान रहना है ।
जब हम निकले थे, सरो के गाछ वसन्त से झुक आए थे,
हम लौटते हैं बर्फ़ को रौंदते हुए,
धीमी है हमारी गति, हम भूखे और प्यासे हैं,
दुख से बोझल हैं हमारे मन, हमारे दुख के बारे में कौन जानेगा ?
(बुन्नो कथित रूप से 1100 ई.पू.)
अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीलाभ