भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेख़ का एहतराम करते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
शेख़ का एहतराम करते हैं ।
दूर से ही सलाम करते हैं ।।
सुब्ह से फ़िक्रे-जाम करते हैं
शाम तक इन्तज़ाम करते हैं ।
सदक़े लेता है हर क़तील उनके
क्या सलीक़े से काम करते हैं ।
उनका मिलना ही सबसे मुश्किल है
वो जो दिल में क़याम करते हैं ।
आज वाएज़ की मान जाते हैं
गोया क़िस्सा तमाम करते हैं ।
उसने क्या कह दिया ज़माने से
सब मेरा एहतराम करते हैं ।
सोज़ शायद चलाचली में हैं
आजकल कम कलाम करते हैं ।।