भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शैलबाला / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
पहाड़ियों पर बिखरे सुन्दर समवेत
देवत्व की सीढ़ियों-से सुन्दर खेत
ध्वनित नित विश्वहित प्रार्थना मुखर
पंक्तिबद्ध खड़े अनुशासन में तरु-शिखर
घाटी में गूँजते शैल-बालाओं के मंगलगान
वह स्वामिनी, अनुचरी कौन कहे अनजान
पहाड़ी-सूरज से पहले ही, उसकी उनींदी भोर
रात्रि उसे विश्राम न देती, बस देती झकझोर
हाड़ कँपाती शीत देती, गर्म कहानी झुलसाती
चारा-पत्ती, पानी ढोने में मधुमास बिताती
विकट संघर्ष, किन्तु अधरों पर मुस्कान दृढ़,
सबल, श्रेष्ठ वह, है तपस्विनी महान
और वहीं पर कहीं रम गया मेरा वैरागी मन
वहीं बसी हैं चेतन, उपचेतन और अवचेतन
सब के सब करते वंदन जड़ चेतन अविराम
देवदूत नतमस्तक कर्मयोगिनी तुम्हें प्रणाम !