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शोर का यह शहर / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
एकान्त में
चीन्हे गये वे दृश्य
अब तक जी रहे हैं।
लौट फिर
एक बार उनको देखना है।
आँख पर
कानों के पर्दे पड़ गये हैं
और पैरों में कोई हरकत नहीं है
शोर का यह शहर तब भी रोकता था
शोर का यह शहर अब भी रोकता है।