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श्याम संग श्याम, बह रही श्री यमुने / गोविन्ददास
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श्याम संग श्याम, बह रही श्री यमुने।
सुरत श्रम बिंदु तें, सिंधु सी बहि चली, मानो आतुर अलि रही न भवने॥१॥
कोटि कामहि वारों, रूप नैनन निहारो, लाल गिरिधरन संग करत रमने।
हरखि गोविन्द प्रभु, निरखि इनकी ओर मानों नव दुलहनीं आइ गवने॥२॥