श्याम संग श्याम, बह रही श्री यमुने।
सुरत श्रम बिंदु तें, सिंधु सी बहि चली, मानो आतुर अलि रही न भवने॥१॥
कोटि कामहि वारों, रूप नैनन निहारो, लाल गिरिधरन संग करत रमने।
हरखि गोविन्द प्रभु, निरखि इनकी ओर मानों नव दुलहनीं आइ गवने॥२॥
श्याम संग श्याम, बह रही श्री यमुने।
सुरत श्रम बिंदु तें, सिंधु सी बहि चली, मानो आतुर अलि रही न भवने॥१॥
कोटि कामहि वारों, रूप नैनन निहारो, लाल गिरिधरन संग करत रमने।
हरखि गोविन्द प्रभु, निरखि इनकी ओर मानों नव दुलहनीं आइ गवने॥२॥