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श्रद्धांजलि / पल्लवी मिश्रा

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हो रही है आज
न जाने कैसी यह द्विविधा?
अश्रुपूरित नेत्रों से करते हुए तुझे विदा,
इस खबर ने हृदय में
न जाने कैसी हलचल है मचाई?
जानती हूँ
यह है सच्चाई;
फिर भी यकीं नहीं हो रहा है
कि तुम इस तरह,
अचानक,
सबको रोता-बिलखता छोड़कर,
मायामोह का हर बन्धन तोड़कर;
ऐसे कैसे जा सकती हो?
सबकी तुम प्यारी थीं,
सबकी राजदुलारी थीं,
अपनों को कैसे ठेस लगा सकती हो?
तुममें तो गति थी;
जीवन था,
हौसला था-
फिर जिन्दगी से हार मानने का
यह कैसा तुम्हारा फैसला था?