1.
”कोटि-काम-शोभा श्याम अंग नीलकंजघन अरुण-सरोज-पद नख-जोति मोती हैं।
रेख-कुलिश-ध्वज-वर-अंकुश-पग-नूपुर धुनि सुनि कै मुनीशन मन छोभ अति होती हैं।
रेखात्रय-उदर गँभीर-नाभि किंकिणिकटि भुज-विशाल-भूषणयुत सुखमा-की-सोती हैं।
उर-मणि-हार-हरि-नख द्विज-पाद-अंक पदिक मनोहर छवि साजहूं सँजोती हैं॥
2.
कम्वुकण्ठ चिवुक-सहायमान आननछवि अमित अनंग अंग शोभा अति जायो है।
दुइ दुईदाँत अति-रुचिर-अधर-रक्त नासा-शुचि तिलक अपार छवि छायो है।
सुन्दर कपोल गोल बोल प्रियतोँ तरि मधु अलिपुंज केश गभुआरे मनभायो है।
चारु श्रुति नीलकंज नेत्रवर भौंह बंग तनु पीत झिंगुली सजि मातु पहिरायो है॥
3.
जानुपाणि विहरैँ नृपांगन के माँझ रूपकान्ति अवलोकि मनमोद बढ़ि जात है।
ज्ञानगिरा गोतित पुनीत सुखधाम राम मोहगत विगत विनोद अवदात है।
निर्गुण निरंजन अज व्यापक सुब्रह्मवर प्रेमभाव भक्तिवश भक्त सुखदात है।
शेषनिगमागम थकि जात कहि लीलावश पार नहिं पावैँ निशिदिन सरसात है॥
इति श्री बाल्यावस्था शृंगार वर्णनम्