श्री गणेश वन्दना / यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
बिघन बिदारबे कौ, सगुन सुधारीबे कौ,
अघन उधारिबे कौ जाकौ नित्य काम है।
मोद के मनाइबे कौ, मोदक के खाइबे कौ,
सोध के सुझाइबे कौ, गुन अभिराम है।
विद्या-बुद्धि, ऋद्धि-सिद्धि, भक्ति-मुक्ति दैवे ही कौ,
परिगौ सुभाव सदा ललित ललाम है।
'प्रीतम' पियारे प्राण ग्यान गुन बारे ऐसे,
देव गनराज जू कों सतत प्रणाम है।।
बुद्धि ते ही बिपति बिदारबौ ही भायौ जिन,
सारिबौ सु-काज सदा गायौ यह गान है।
बिस्व कियौ नत, हट बिघन किए हैं सब,
सत गुन पुंड ध्वज सीस कौ निसान है।
बलिन में बली, उग्र-उन्नति में अग्रगन्य,
बन्दित बिदित जग महिमा महान है।
'प्रीतम' स्वतंत्र महामंत्र के प्रणेता, गण-
तंत्र, औ गनेस दोऊ एक ही समान है।।
दाता हैं सु-बुद्धि के, प्रदाता ऋद्धि-सिद्धि ही के,
बिस्व के बिधाता जो राखत दुख-द्वन्द ना।
आये सुन्ड-तुन्ड कों हलात दीन द्वारेन पै,
देखत ही पापिन कें भए हैं अनन्द ना।
बारौ री दीपकें, सँभारौ री ब्यंजन बहु,
पूजौ री बिबिध भाँति, करौ मन मन्द ना।
'प्रीतम' कविन्द छन्द रचना सुरुचि रचि,
गाबै गौरि सुत श्री गजानन की बन्दना।।