भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री जमुना जी दीन जानि मोहिं दीजे / परमानंददास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्री जमुना जी दीन जानि मोहिं दीजे।
नंदकुमार सदा वर मांगों गोपिन की दासी मोहि कीजे ॥१॥
तुम तो परम उदार ख्रुपा निधे चरन सरन सुखकारी।
तिहारे बस सदा लाडिली वर तट क्रीडत गिरिधारी॥२॥
सब ब्रजजन विहरत संग मिलि अद्भुत रास विलासी ।
तुम्हारे पुलिन निकट कुंजने द्रुम कोमल ससी सुबासी ॥३॥
ज्यों मंडल में चंद बिराजत भरि भरि छिरकत नारी ।
हँसत न्हात अति रस भरि क्रीडत जल क्रीडा सुखकारी ॥४॥
रानी जू के मंदिर में नित उठि पाँय लागि भवन काज सब कीजे ।
परमानन्ददास दासी व्है नन्दनन्दन सुख दीजे ॥५॥