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श्री राधामाधव / छन्द 41-50 / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

देखि मनोहर श्याम को रूपु धरा हुलसै दुलरावन कौ,
व्यौम झुंकै, बदरा लपकै बिजुरी झपकै पग-वन्दन कौ।
आवै समीर धरै नहि धीर कहै लखिहौं झट मोहन कौ।
देवन के दल के दल व्योम पै आतुर ह्वै रहे दर्शन कौ।41।

नेह सनेह मैं श्याम निशा उमगाति है मंगल गीत सुनावै।
बाजति है करताल तरंग की भानुजा मोद मनावति धावै।
मंडली देवन की लुकि कै हरि पाँयन ज्योति के फूल चढ़ावै।
दामिनी व्योम ते भाजति-भाजति मोतिन हार लिये जनु आवै।42।

कटि काछिनी, नूपुर पाँयन मैं उर मोतिन माल विराजति है।
कर-कंज मैं कंचन बाँसुरी सोहति मोहत तान गुजावत है
ब्रजधाम के भाग जगे उमगे नित कान्ह पै प्रेम लुटावति है।
हरि बाल सरूप अनूप लस्यो उपमान हिये नहि आवति है।43।

पाप कौ आनन आपुहि आप निहारि कै घोर उदास भयो है।
आनि उयो जन-मावस मैं विधु आँगन दिव्य प्रकास भयो है।
माधुरी माधव की लखि कै मन माँहि मनौ मधुमास भयो है।
जन्म लियो ब्रज मैं घनष्याम जसोदा हिये सुखरास भयो है।44।

कोकिल -तान मैं साँझ-विहान मैं नित्यछवि माधव की।
फूल-कलीन मैं, अम्ब-कदम्ब मैं मंजु लसै छवि माधव की।
डारन-डारन पातन-पातन मैं विकसै छवि माधव की।
माधव आये कि माधव आये कि माधव में छवि माधव की।45।
आइ गयो रसवन्त वसन्त बहारन हारन की छवि भोली।
भृंग रहे मकरन्द की आस मैं मोहन के मुख कंज पै डोली।
हारति पाटल हार सुकण्ठ मैं बाँधति है कर कंचन मोली।
श्याम के भाल विसाल पै पुन्य प्रभात लगावति मंगल रोली।46।

बाढ्यो सुधारस प्रेम जबै हरि आवन की धुनि कानन छ्वै गई।
मोहन की सुधि आवत ही दुख दोषन की सबै कारिख ध्वै गई।
जीवन की गति जात कही नहि माधव सौं मिलि आपुहि ख्वै गई।
आँखिन की गति भादौं भई सखि! आँसुन की गति सावन ह्वै गई।47।

अर्जुन को रथ हाँकेउ सखा बनि दास बन्यो करिकै सेवकाई।
मोह हर्’यो सबु पारथ कौ प्रभु् दिव्य सुगीता कौं ज्ञान कराई।
खोलि दियो उर के दृग पावन आपनो रूपु अखण्ड दिखाई।
हौ सकुचाति खड़े अब काहे को मुक्ति की बारी हमारी है आई।48।

नीको कियो कबहूँ नहि काम न ध्यान धर्’यो हरि कै पद पंकज।
जानति हौं नही वन्दन कौ गुन औगुन कौ रह्यो नित्य महागज।
भाव को सिन्धु करै घनघोष कहौहि भाँति घरै मन धीरज?
हौं अपराधी तिहारो सदा हरि! चाहति हौ पद पंकज की रज।49।

यहु जीवन धन्य बनै तौ सही मद-मोह-अरन्य उजारि दै मोहन!
मनु चाहति एकहि बार सही कहि दास को नाउँ पुकारि दै मोहन!
करि पातक पातकी घोर भयौं अपने कर धाइ सँवारि दै मोहन!
बिगरी परी कोटिक जन्मन तैं अब जानि अनाथ, सुधारि दै मोहन! 50।