श्री राम केवट संवाद / कालीकान्त झा ‘बूच’
हम सभ कते काल सँ नदी कात छी ठाढ़ औ,
पहुँचाबू ओहि पर औ ना।
संगमे नव-नौतून परिवार,
कलकल गंगा जीक धार,
केवट पकड़ू-पकड़ू अपने सँ पतवार औ,
पहुँचाबू...
चिन्हलहुँ - चिन्हलहुँ औ सरकार,
थिकियै अवधक राजकुमार,
सुन्हलहुँ चरण कमल मकरंदक चमत्कार औ,
नहिं पहुँचायब पार औ ना।
लागल फेर चरण मे धूरि,
छुविते नैयो जेतै ऊड़ि
पोसब कहू कोन कोन तखन अपन परिवार औ,
नहिं पहुँचायब पार औ ना।
पहिने तरबा अपन धोआऊ,
तकरा बाद नाव पर जाऊ,
अपने जौं चाहै छी उतरऽ दिन-देखार औ,
पहुँचाबू ओहि पर औ ना।
सुनिते प्रेमक अटपट बात,
प्रभुकेर सिहरऽ लागल गात,
पसरल मुँॅह पर मुस्की मन मे भरल दुलार औ,
पहुँचाबू ओहि पर औ ना।
हुलसल मन उमड़ल आनंद,
धोलक पद कमलक मकरंद
अमृत-ओदक पिविते भेल सकुल उद्धर औ,
रघुवर भेलेनि पार औ ना।