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श्रृंगार / कविता कानन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दरपन के सामने
बैठी सुंदरी
कर रही
सोलह श्रृंगार
पिया के लिये ।
बोला आईना -
खूब करो श्रृंगार
पर केवल
दूसरों के लिये ही नहीं
अपने लिये भी ।
रहो सदा प्रसन्न
मन सन्तुष्ट
तभी खिलेगा
अनुपम रूप ।
बाह्य आडम्बर
श्रृंगार प्रसाधन
क्षण भर के लिये
छिपा देते हैं
अवसाद
मन तथा तन का
मत करो दिखावा
खुल कर जियो
अपने लिये
आनन्द के लिये
अपनी आत्मा के
तभी होगी
तुम्हारे रूप के
श्रृंगार की
सार्थकता ...।