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श्वास-श्वास में रमे पिता / शैलेन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
सुख में दुख में
हर स्थिति में
संबल देते हमें पिता हैं
कालचक्र ने
छीन लिया था
बचपन में ही
जिस बरगद को
और अभावों-
की गाड़ी भी
पार कर गई थी
हर हद को
एहसासों में
उस बरगद ने
अपनी गहरी-
जड़ें जमा लीं
तब से अबतक
फूट रही है,
पल प्रतिपल
उससे हरियाली
दूर कहाँ
कब होते मुझसे
श्वास-श्वास में रमे पिता हैं
जब-जब
कठिन परिस्थितियों में
राह नहीं
सूझा करती है
जीवन की
कथरी को सिलते
कोई सूई
जब चुभती है
अँधियारे में
अपना साया
भी जब
गायब हो जाता है
कालसर्प
जब-जब डसने को
ज़हरीला फन
फैलाता है
एहसासों में ही
शिव बनकर
तब-तब आकर जमे पिता हैं