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षडंग / अंकावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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विनु अगेँ अंगी प्रसंग की? विनु नीरेँ की गंग?
विनु कर्मे पुनि व्यर्थ विचारो, सिन्धु न विना तरंग
वेद पुरुष केर नेत्र ज्योतिषे, श्रुति निरुक्त, कर कल्प
छन्द चरण, व्याकृति मुख, शिक्षा घ्राण, षडंग अनल्प।।
कहइछ वेद, खेद एतबे जे विनु वेदांग विचार
करइछ जे प्रचार से हमरा बनबय पंगु विकार